पूत सपूत तो क्यों धन संचे,
जिस स्थितीमें इंसान आ जाता है, उस स्थिती को मानने की तैयारी हो तो दुःख और पीड़ा की ज्यादातर वेदना चली जाती है। सुख और दुःख से निर्लेप बन कर जो अपनी खुशमिजाजी बनाए रखता है ,आखिर में जीत उसी की होतीहै। इंसान की सुख और दुःख में खुश रहने की मस्त मिजाजी उसे ऐसा सुख प्राप्त करवाता है, जिसे कोई ऑर व्यक्ति या परिस्तिथि उससे छीन नहीं सकती ।
अपनी जरुरत से ज्यादा धन इकठ्ठा करने वाले व्यक्ति के दो गणित मुख्य रहते है। १).संचय किया हुआ धन उसे भविष्य की चिंताओं से मुक्त करेगा , २)जब खुद वह इस दुनिया छोड़ कर चला जाएगा तब वह धन उसके पुत्र पुत्रियो के काम आयेगा -।
भविष्य के लिए इंसान कुछ – न-कुछ इंतजाम करे तो इसके इस व्यावारिक बुध्हि का विरोध नहीं किया जा सकता। मगर इंसान का अनुभव तो ऐसा बताता है की भविष्य तो किसी की कल्पना या योजना अनुसार किसी के सामनेनहीं आता है। जब भविष्य , वर्तमान बन सामने आता है , तब एकदम अलग ही परिस्तिथि सामने आती है। जोविचार कर इंतजाम किया हो वो बने ही नहीं ऑर जो नहीं विचारा हो वहीबन जाता है ।
अब दूसरी बात संतानों की करे – मेरे जाने के बाद संचय किया हुआ धन ,मिल्कत आदि मेरे पुत्रो के काम आएगाऐसे सुंदर वहम में इंसान जीता है। अपने संतानों के लिए कुछ छोड़ जाने की भावना पिताको हो वह अच्छी बात है, मगर वह धन संतान को कब कीस प्रसंग में काम ऐसा कोई नहीं जान सकता । संतान वडीलो का त्र्रुण स्वीकारकरेंगे की नहीं , वह बात भी अनुमान बन जाती है। क्योंकि संतानों का उनका अपना जीवन होता है। उनका अलगभविष्य होता है.ऑर जिन्दगी के बारे में उनके स्वतंत्र विचार होते है । एक युवक ने मजाक में कहाँ, . “मेरे पिता ,पुत्र के लिए बहुत सारा धन छोड़ कर जा रहा हूँ , ऐसे ख्याल के साथ गए ,मगर मेरे पिता मेरे लिए जो धन छोड़ कर गए उससे अनेक गुना धन तो मैंने खुद कमाया है.ऑर जो कुछ भी कमाया उसमे मेरे पिताजी के धन का बिल्कुल उपयोग नहीं किया । उन्हें अच्छा लगे या ना लगे ,मगर उनका दिया हुआ एक वारसा मुझे याद रखने जैसा लगता है वह है -डायबीटीस का रोग । ” माँ- बाप को लगता है की अपने बालको की जिन्दगी की सब व्यवस्था अपने हाथ सेकर के जाए ,मगर ऐसा सोचा हुआ अक्सर होता नहीं है । उन्हें नहीं मालुम की उनकी संतान उनकी व्यवस्था कोबदल डालेगा । बड़े महल छोड़ कर जाने वाले राजाओं ने कल्पना की होगी की उनके वंशज सुख से रहेंगे ।परिस्तिथि बदल जाने से उनमे कइयो ने महल को होटलों में बदल दिया है ।
माँ – बाप अपने पुत्रो को बहुत कुछ दे सकते है , व देते भी है। शरीर उनका ही दिया हुआ है.प्रेम की एक बड़ी वसीयतदे सकते है। जिन्दगी में आने वाली समस्याओं को सुलझाने की सूझ -बुझ ऑर सुख दुःख की परिस्तिथि का सामनाकरने की हिम्मत भी वे अपने वसीयत में दे सकते है। रुपये की वसीयत से भी ज्यादा महत्वपूर्ण ऑर कीमती होऐसा बन सकता है ।
पूत सपूत तो क्यों धन संचे ?
पूत कपूत तो क्यों धन संचे ?